जन्म कुंडली का विश्लेशनात्मक अध्ययन
•गुरु की राशि
गुरु 13 अप्रैल, 2022 को कुंभ राशि से मीन राशि में प्रवेश करेगा। वर्ष 2022 का गुरु का गोचर भ्रमण सभी के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाएगा क्योंकि यह एक स्थिर राशि में प्रवेश करेगा। फलस्वरूप, कठिन परिस्थितियों से गुजरने वाले लोग अपने जीवन को और अधिक स्थिर होते देखेंगे। वे विकास और प्रगति का अनुभव प्राप्त करेंगे और स्थिरता का अनुभव करेंगे। वे अपने कार्यों को सफलता के साथ पूरा होते हुए देखेंगे।
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गुरु को ज्योतिष में सभी ग्रहों में सर्वश्रेष्ट शुभ ग्रह का मान प्राप्त है। यह शुभ ग्रह एक वर्ष की अवधि में राशि चक्र का एक भ्रमण पूरा करता है, जिसका अर्थ है की यह प्रायः एक राशि में एक वर्ष तक रहता है। यह विस्तार और विकास का कारक होने से जिस राशि या भाव में स्थित रहता है उस राशि के गुणों की वृद्धि करता है। शुभ ग्रह होने से किसी भी भाव मे गुरु की उपस्थिती से अशुभ राशि या उस भाव के अशुभ फल निरस्त अथवा क्षीण हो जाते हैं और शुभ फलों की वृद्धि होती है। जब यह गोचर के समय राशि परवर्तन करता है तो इसका प्रभाव महीनों तक रहता है क्योकि यह सूर्य, बुध और शुक्र की तुलना में धीमी गति से विचरण करने वाला ग्रह है। गुरु धर्म का कारक है और इसकी कृपा दृष्टि से ही सब मंगलमाय अनुष्ठान सफल होते हैं।
गुरु हमें धन, बुद्धि, ज्ञान और आध्यात्मिकता की भावना प्रदान करता है। इसका गोचर यह जिस भाव में हो उस भाव की प्रकृति और उस भाव में स्थित ग्रहों के प्रभाव और स्वभाव में वृद्धि को प्रभावित करता है। यह व्यक्ति विशेष या जातक पर सकारात्मक प्रभाव डालता है और उसकी कार्यक्षमता को द्विगुणित करता है। यह जातक के जीवन में आर्थिक विकास और समृद्धि लाएगा। गुरु का गोचर बच्चों और परिवार का समग्र कल्याण भी सुनिश्चित करता है। इसका व्यक्ति के स्वास्थ्य और कल्याण पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। महिला जातकों के संदर्भ मे, गुरु विवाह में उनके सौभाग्य और एक योग्य पति की खोज का प्रतिनिधित्व करता है। यह व्यक्ति को ब्रह्मांड के गुप्त ज्ञान की अनुभूति या खोज के लिए प्रेरित करता है, साथ ही गुरु की कृपा से जातक आध्यात्मिकता की ओर भी अग्रेषित होता।
गुरु गोचर रिपोर्ट व्यक्ति के जीवन के सभी महत्वपूर्ण पहलुओं पर प्रकाश डालती है। इससे आपको यह जानकारी प्राप्त होगी की जीवन में अवसरों से अधिकतम लाभ कैसे प्राप्त करें, साथ ही कठिन समय से उबरने के उपाय भी बताएगी। यह रिपोर्ट आपके लिए एक मार्गदर्शक के रूप में कार्य करेगी जो यह बताएगी कि अनेक विकल्पों के होने पर या चुनाव करते समय कौन से रास्ते अपनाए जाएं, जो लाभकारी होंगे। सही समय पर सही निर्णय लेने पर सफलता निर्भर करती है, और यह रिपोर्ट आपको सफलता पाने में मदद करेगी। भौतिक जीवन में सफलता प्राप्त करने में आपकी सहायता करने के अलावा, रिपोर्ट आपके अंतर की आध्यात्मिक क्षमता को उजागर करने में भी मदद करेगी। यह आपको विपरीत परिस्थितियों में परिपक्व व्यवहार करने और अपने परिवेश के लोगों का सम्मान और प्रशंसा जीतने में मदद करेगा। गुरु धर्म का सूचक ग्रह है, और गुरु की गोचर रिपोर्ट आपको अपने धर्म का पालन करने में मदद करेगी और इस प्रकार आप जीवन में अपने उद्देश्य को पूरा करने मे सफल होंगे।
गुरु गोचर की विस्तृत प्रीमियम रिपोर्ट में ग्रहों के निरयण देशांतर, दशा काल का विवरण और अष्टकवर्ग का फलादेश शामिल हैं। इसमें जन्म कुंडली में गुरु की स्थिति का विस्तृत विश्लेषण शामिल है, यह विश्लेषण गुरु किस भाव और राशि मे स्थित है, उनके अनुसार बदलते हैं, या भिन्न हो सकते हैं। आध्यात्मिकता का कारक यह ग्रह समान्यतः व्यक्ति को इसी मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है और जीवन के सभी पहलुओं पर आशावादी रुख अपनाने के लिए सहायता करता है। गुरु गोचर भविष्यवाणी जन्म कुंडली में ग्रहों की वर्तमान स्थिति पर आधारित हैं। कुंडली के भावों पर गुरु की दृष्टि के प्रभाव को रिपोर्ट में विस्तृत रूप से समझकर सारांशित किया गया है, उसी प्रकार से यह विश्लेषण विभिन्न कक्षाओं के लिए भी दिया गया है। कक्षा अवधारणा का उपयोग मुख्य रूप से यह समझने के लिए किया जाता है कि भ्रमण के जातक के जीवन में क्या परिणाम होंगे।
निरयण, या ग्रहों का नक्षत्र देशांतर, कुंडली में ग्रहों की स्थिति के निर्धारण के लिए किया जाता है। प्रत्येक कुंडली एक 360-अंश का वलय है जो 12 भावों में विभाजित है। अर्थात प्रत्येक भाव 30 अंश का होता है। निरयण अक्षांश किसी समय विशेष पर उस भाव में स्थित ग्रह की स्थिति बताता है। निरयण देशांतर ज्ञात करने हेतु नक्षत्रों को नियत बिन्दुओं के रूप में रखा जाता है। इस प्रकार यह सायन पद्धती से भिन्न है, क्योंकि सायन गणना में सूर्य को स्थिर बिंदु के रूप में रखा जाता है। निरयण देशांतर और सायन देशांतर के बीच का अंतर अयनांश या नक्षत्र कुंडली के बीच का अंशात्मक अंतर है। वैदिक ज्योतिष में फलादेश के लिए निरयण पद्धति का अनुसरण किया जाता है।
भारतीय वैदिक पद्धति में नौ ग्रह माने गए हैं। दशाफल के निर्धारण में यह किसी भी व्यक्ति के जीवन में किसी विशेष समय पर कुंडली में एक निश्चित ग्रह सदैव कार्यरत होता है। उस समय जातक पर इस ग्रह का प्रभाव सबसे अधिक रहता है। ज्योतिष में इसी कों ग्रहदशा कहते हैं। विषोंतरी दशा पद्धति सर्वमान्य प्रणाली है। यह 120 साल का चक्र है जो नौ ग्रहों में विभाजित है। क्रम के अनुसार, इस पद्धति के अंतर्गत ग्रहों की विशिष्ट वर्षों की दशा अवधि हैं - केतु (7 वर्ष), शुक्र (20), सूर्य (6 वर्ष), चंद्र (10 वर्ष), मंगल (7 वर्ष), राहु (18 वर्ष), गुरु (16 वर्ष), शनि (19 वर्ष) और बुध (17 वर्ष)। प्रत्येक ग्रह की दशा अवधि को इसके उपरांत उप-अवधि में विभाजित किया जाता है, जिसके दौरान अन्य ग्रह मुख्य दशा या महादशा में ग्रह के शासन के अधीन अपना प्रभाव डालते हैं।
अष्टकवर्ग तालिका में प्रत्येक भाव का 8 गुना विभाजन होता है। सूर्य, चंद्र, बुध, शुक्र, मंगल, गुरु और शनि ग्रह माने जाते हैं। वही राहु और केतु को ग्रह नहीं, अपितु छाया ग्रह माना जाता है। लग्न को आठवां ग्रह माना जाता है। प्रत्येक ग्रह को दूसरे ग्रह के संबंध में रेखा या बिंदु दिये जाते हैं। रेखा का अर्थ शुभ फलदायी, और 'बिन्दु ' का अर्थ अशुभफलदायी होता है। किसी ग्रह को प्राप्त कुल बिंदु 0 और 7 के बीच हो सकते हैं । फिर 8 ग्रहों में से प्रत्येक के अंक जोड़े जाते हैं। यह उस भाव को प्राप्त सब गुणों को दर्शाता है। यदि ये गुण 18 से कम हो, तो उस भाव के नकारात्मक लक्षण प्रबल होते हैं। 18-25 के बीच गुणनफल हो तो मध्यम फल और 25-28 के बीच प्राप्त संख्या को शुभ माना जाता है, और 28 से अधिक का गुण हों तो अत्यंत शुभ माना जाता है।
सर्वाष्टकवर्ग तालिका मे किसी विशेष राशि से भ्रमण करते समय किसी ग्रह विशेष के प्रभाव की गणना की जाती है। राशि पर उस ग्रह का प्रभाव, और अन्य ग्रहों के प्रभाव की गणना की जाती है। यदि प्रभाव सकारात्मक है, तो ‘रेखा” और यदि प्रभाव नकारात्मक है, तो 'बिन्दु' अंकित किया जाता है। उदाहरण के लिए, यदि सूर्य का मेष राशि में प्रवेश करना अनुकूल प्रभाव डालता है, तो सूर्य के कक्ष मे रेखा अंकित की जाती है। अब, यदि मेष राशिगत सूर्य चंद्र के लिए शुभ नहीं है, तो चंद्र को बिन्दु प्रदान किया जाता है। चंद्रके बाद यदि सूर्य मेष राशि में मंगल के लिए शुभ हो तो मंगल रेखा अंकित की जाती है। लग्न, राहु और केतु के अतिरिक्त सभी 7 ग्रहों को प्राप्त रेखाओं और बिन्दुओं की गणना की जाती है। प्राप्त परिणाम यदि 0 और 3 के बीच हो तो इसे अशुभ माना जाएगा। अर्थात सूर्य का मेष राशि में गोचर किसी व्यक्ति के लिए अशुभ फलदायी हो और यदि प्राप्त गुण 4 है, तो परिणाम साधारण माना जाता है, और यदि प्राप्त गुण 5-8 के बीच हों तो यह गोचर अच्छा माना जाता है।
यह अष्टकवर्ग में प्राप्त अंकों का तदुपरान्त सूक्ष्म और व्यापक सारणीकरण है। सर्वाष्टकवर्ग तालिका में, गणना किए गए किसी विशेष ग्रह के कुल अंक उक्त राशि के आगे अंकित होते हैं। फिर उस राशि में प्रत्येक ग्रह के कुल अंक जोड़ दिए जाते हैं। यदि प्राप्त अंक 28 से कम है, तो उस राशि का प्रभाव अशुभ होगा। यदि यह 28 से अधिक है, तो राशि का प्रभाव लाभकारी होगा। सम्पूर्ण राशिचक्र के प्राप्त अंक 337 होंगे। इनके विश्लेषण से, इस जीवन में जातक के बलाबल, शुभाशुभ फलों और व्यक्ति के कर्मफलों की गणना की जा सकती है।
जन्म कुंडली में, गुरु 9वें और 12वें भावों का स्वामी होता है और द्वितीय, पंचम, दशम और एकादश भावों का कारक है। सकारात्मक स्थिति में गुरु जातक को स्वास्थ्य, धनधान्य और समृद्धि के साथ साथ सुंदर व्यक्तित्व प्रदान करता है। बलवान गुरु जातक में शुभ संस्कारों का विकास करने और स्वस्थ और सुनिश्चित केंद्रिभूत मानसिकता विकसित करने सहायक होता है। वहीं पीड़ित गुरु जातक को अव्यावहारिक और मूर्खताओं के लिए अतिसंवेदनशील बनाता है। जातक में व्यर्थ में धन खर्च करने की प्रवृति बढ़ती है और वह ध्युत, जुआ आदि अनैतिक कार्यों में लिप्त होता है। जिससे वह ऋणी और व्यर्थ के विवादों के कारण दुखों को प्राप्त होता है। उत्तम पुखराज रत्न को धारणकर जातक गुरु का कृपा पात्र हो सकता है।
किसी भी समय में ग्रहों की स्थिति को दर्शाने वाली कुंडली को गोचर कुंडली कहते हैं। ग्रह हमेशा गतिशील रहते हैं और कुंडली के 12 भावों में विचरण कर रहे होते हैं। उन के संबंध उनकी स्थिति और एक दूसरे पर पड़ने वाली दृष्टियों के अनुसार नित्य बदलते रहते हैं। इस निर्बाध परिवर्तन का प्रभाव व्यक्ति के जीवन पर और जन्म कुंडली पर पड़ता रहता है। जब हम गोचर भ्रमण के संदर्भ में बात करते हैं तब हम किन्ही दो या अधिक ग्रहों की इस ब्रम्हाण्ड में ग्रह स्थिति का अध्ययन कर रहे होते हैं जो संसार में सजीवों के भाग्य को विशेष रूप से प्रभावित करते हैं। जिसका विश्वभर के लोगों के भाग्य पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा। गोचर कुंडली जन्म कुंडली से भिन्न होने का तात्पर्य यह है की जन्मकुंडली में ग्रह स्थिर रहते हैं जब की गोचर कुंडली में वे निरंतर बदलते रहते हैं।
गुरु सौर मण्डल का सबसे बड़ा ग्रह है यह एक मंद गति का ग्रह है जो कुंडली में बारह राशियों में विचरण करने में बारह वर्ष का समय लेता है। अर्थात, यह एक राशि में एक वर्ष तक भ्रमण करता है। गुरु की किसी राशि विशेष में उपस्थिती उस राशि के शुभ गुणों को बढ़ाती है और अशुभ प्रभावों को कम करती है। जब भी गुरु वक्री होते हैं तो जातक के जीवन में परिवर्तन लाते हैं और उसकी आध्यात्मिक, आंतरिक और धार्मिक प्रवृत्ति का उत्थान करते हैं। जब ग्रह विपरीत दिशा में संचार कर रहा होता है तो उसे वक्री गृह कहते है। जिन जातकों की कुंडली में गुरु वक्री होता है वे ऐसे करी करने में सक्षम होते हैं जो किसी अन्य सामान्य व्यक्ति के लिए असंभव प्रतीत हों।
कुंडली में प्रायः सभी ग्रह अपने स्थान से सातवें स्थान को पूर्ण द्रष्टि से देखते है।
गुरु सप्तम स्थान के अतिरिक्त अन्य दो अर्थात पंचम और नवम भाव को भी पूर्ण द्रष्टि से देखता है। कुंडली का पंचम भाव शिक्षा का और नवम भाव उच्च शिक्षा का भाव माना गया है। वैदिक ज्योतिषशास्त्र में गुरु को शिक्षक की संज्ञा प्रदान की गई है अर्थात इसे “गुरु” माना गया है और शिक्षा मानव जीवन का एक प्रमुख आयाम है जो कुंडली में किसी भी ग्रह को प्रदत्त है। इस तरह स्वाभाविक रूप से पंचम दृष्टि से जातक किसके लिए शिक्षकतुल्य, सप्तम द्रष्टि से किसे ज्ञान प्रदान करता है और नवंम से इसके लिए पितृतुल्य है इस पर प्रकाश डालता है।
अष्टकवर्ग पद्धति में हर भाव का आठ भागों में विभाजन किया जाता है। प्रत्येक भाग 3 अंश 45 कला का होता है जिसे कक्षा कहते हैं। यदि किसी कक्षा को बिन्दु प्राप्त है तो वह उस ग्रह के शुभ फल को इंगित करता है। यदि कक्षा को बिन्दु प्राप्त नहीं है तो शुभ फलों की अनुपस्थिति का ध्योतक होगा। हर कक्षा एक गृह विशेष के स्वामित्व में होती है। गुरु राशि की द्वितीय कक्षा का अधिपति होता है। यह हर कक्षा से विचरण करने में 45 दिनों की अवधि लेता है। गुरु के किसी कक्षा से विचरण का पूरा प्रभाव जातक पर गुरु और उस कक्षा के स्वामी के सम्बन्धों पर आधारित होता है। शनि प्रथम कक्षा का स्वामी होता है। तदुपरांत, गुरु द्वितीय, मंगल त्रातीय, सूर्य चतुर्थ, शुक्र पाँचवी, बुध छठी, चंद्रसातवी और लग्न आठवीं कक्षा का अधिपति होता है।
सामन्यतौर पर आकाश को देखने पर ग्रह पूर्व की ओर विचरते दिखाई देते हैं। जैसे जैसे दिन गुजरते हैं तो पूर्व में स्थित तारे जो स्थिर होते हैं, उनकी पूर्वगामी गति मार्गी कहलाती है। परंतु, कभी कभी मंद गति से चलने वाले ग्रह विपरीत दिशा की ओर चलते दिखाई देते हैं। अर्थात, वे ग्रह आकाश में एक विशेष अवधि के लिए अपनी समान स्थिति और गति में आने से पहले पश्चिम की दिशा की ओर गतिशील लगते हैं। उस समय उस ग्रह को वक्री ग्रह कहा जाता है। यह तब घटित होता है जब पृथ्वी किसी मंद गति ग्रह को अपनी वार्षिक सूर्य परिक्रमा के दौरान पीछे छोड़ती प्रतीत होती है। वक्री ग्रह भी जातक पर विशेष प्रभाव डालते हैं। वक्री गुरु जातक में आध्यात्मिक प्रवृत्ति को बढ़ाता है और उसे अपनी अंतर चेतना की खोज के प्रति प्रोत्साहित करता है।
गुरु राशिचक्र की बारह राशियों से भ्रमण के लिए कुंडली के द्वादश भावो से संचार के लिए 12 वर्ष को अवधि लेता है। इसका अर्थ है की वह हर राशि में एक वर्ष रहता है। गुरु एक शुभ ग्रह है और इसका छठवें और आठवें भाव के अतिरिक्त हर भाव से गोचर भ्रमण शुभ फल प्रदान करता है। छठवें और आठवें भाव में यह सामान्य फल देता है। गुरु का प्रथम भाव से संचार जातक को शारीरिक और मानसिक तौर से स्वस्थ बनाता है। गुरु का द्वीतीय भाव से संचार जातक के सामाजिक सम्बन्धों को सुधारता है। तृतीय भाव में यह जातक को प्रतिष्ठा दिलाता है। चतुर्थ भाव में गोचर संचार से गृह सौख्य की प्राप्ति होती है। पंचम भाव में यह प्रेम संबंध बढ़ाता है। छठे भाव में यह मानसिक स्थिति को प्रभावित करता है। सप्तम भाव में वैवाहिक सुख देता है। अष्टम भाव में मानसिक दुविधाओं को बढ़ाता है। नवम भाव से विचरण में आध्यात्मिक शांति प्रदान करता है। दशम भाव में नौकरी और कामकाज के कार्य में सफलता दिलाता है। एकादश भाव में आर्थिक लाभ देता है, और द्वादश भाव में मानसिक तनाव और अकेलेपन को बढ़ाता है।
वर्ष 2022 की शुरुआत कुंभ राशि में गुरु से होगी। यह अपनी स्वराशि मीन में 13 अप्रैल को प्रवेश करेगा और वहां अंदाजन एक साल स्थित रहने के बाद 21 अप्रैल, 2023 को मेष राशि में प्रवेश करेगा।
इस प्रकार गुरु 13 अप्रैल, 2022 से मीन राशि से होकर राशि चक्र का अपना 12 साल का चक्र पूरा करेगा।
Jupiter is the planet of expansion and development. On April 13, 2022 Jupiter transit from Aquarius to Pisces. Get the 2022 Jupiter transit predictions.
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The Vedic Astrology planets Rahu & Ketu have changed their signs to Aries and to Libra respectively on 12th of April 2022 and remains there up to 30th October 2023. These sign changes can influence the matters in your career, marriage etc. and you can know in detail about the effects from this Rahu-Ketu Transit Report.
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Shani or Saturn is the planet of obstructions and limitations. It has moved from Sagittarius to Capricorn on 24th January 2020. This Saturn Transit Report gives a detailed report on the effect of this sign change on your personal and professional lives.
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Analysis of Jupiter in Birth Chart
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Lordships of jupiter in your birth chart
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Detailed near term predictions based on Kakshya
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Detailed jupiter transit predictions upto next jupiter transit
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